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चांद की पूजा के बाद महिलाएं छलनी से क्यों देखती हैं पति का चेहरा

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करवा चौथ की पूजा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है जब तक सुहागिन महिलाएं छलनी से चांद को देख न लें। इसलिए करवा चौथ में छलनी का विशेष महत्व होता है। 27 अक्टूबर को करवा चौथ है। इस पर्व में महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। व्रत की शाम को महिलाएं छलनी की पूजा करके चांद को देखते हुए प्रार्थना करती हैं कि उनका सौभाग्य और सुहाग सलामत रहे।
कथा
करवा चौथ में छलनी के पीछे पौराणिक मान्यता है। वीरवती नाम की एक सुहागिन महिला थी। वीरवती ने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी। भाईयों से बहन की ऐसी दशा देखी नहीं जा रही थी। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। बहन ने झूठा चांद देखकर व्रत खोल लिया। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। वीरवती ने दोबारा करवा चौथ का व्रत रखा जिसके बाद मृत पति जीवित हो उठा।वहीं छलनी से अपने पति को देखने का मनोवैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल पत्नी अपने मन से सभी विचारों और भावनाओं को छलनी से छानकर शुद्ध कर लेती है और अपने पति के प्रति सच्चे प्रेम को प्रगट करती हैं।
करवा और सरगी का महत्व
मिट्टी का करवा पंचतत्व का प्रतीक माना जाता है। करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा की पूजा करके करवा माता से प्रार्थना करती है कि उनका प्रेम अटूट रहे। दोनों के बीच विश्वास का धागा कमजोर न होने पाए।
करवा चौथ में सरगी खिलाई जाती है इसके अंतर्गत सूर्योदय से पहले महिलाएं मिठाई, हलवा और ड्राई फ्रूटस खाती हैं। इसके बाद पूरे दिन व्रत रखती हैं और शाम को चांद के दर्शन करने के बाद अपने पति के हाथो से जल ग्रहण करने के बाद व्रत तोड़ती हैं।
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